भगवान श्री कृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर विशेष आलेख।
हे मनमोहन !
हे गोपाल ! हे गिरधर !
हे कृष्ण निश्चित रूप से आपका यह रूप बड़ा ही मनमोहक है, तुम्हारे जैसा तीनों लोकों में कोई नहीं है, इतना सुंदर और दिव्य रूप जिसे देखकर कामदेव भी शरमा जाए।
जो भी एक बार आपको देख लेता है,वह हमेशा हमेशा को तन मन से तुम्हारा होकर रह जाता है, वह फिर किसी और को देखना नहीं चाहता, जो तुम्हें चाहता है, वह फिर किसी और को नहीं चाहता।
जो तुम्हें एक बार सुन लेता है, वह फिर किसी और को सुनना नहीं चाहता, तुम उसके हृदय में इस तरह बस जाते हो कि, चाहकर भी तुम फिर उसके हृदय से निकल नहीं पाते।
तुमने बंशी भी बजाई, तुमने सुदर्शन चक्र भी उठाया, तुमने रास भी रचाया, तुमने गीता जैसा अद्भुत ज्ञान भी दिया, जिसको जानने के बाद फिर जीवन में कुछ जानने के लिए शेष नहीं रह जाता।
जो तुमसे जिस रूप में मिला, तुमने उसी रूप में उसको दर्शन दिए, जो तुमसे दुश्मन बनाकर मिला, तुम दुश्मन बन कर मिले, जो तुमसे मित्र बन कर मिला, तो मित्र बनकर मिले, जो तुमसे भक्त बनकर मिला, तुम मुझे भक्त बनकर मिले।
दुर्योधन का मोहन भोग ठुकराकर सुदामा के जरा से सांग से खुश हो गए, मीरा के जहर का प्याला तुम खुद पी गए, राजा परीक्षित को जीवनदान दे दिया, तो अश्वत्थामा को हमेशा हमेशा पृथ्वी पर भटकने का शाप दे दिया, अर्जुन को गले लगाया तो विश्व विजेता बना दिया।
अद्भुत है, तुम्हारी लीला, अद्भुत है, तुम्हारा प्रताप, सारी सृष्टि में कोई भी तुम्हारा मुकाबला नहीं कर सकता, तुम जीवन मरण से मुक्त हो, तुम अजय हो, पर ब्रह्म हो, परमात्मा हो, परमेश्वर हो,साक्षात ईश्वर हो, तुम्हें कोई नहीं जानता लेकिन तुम सबके हृदय की बात जानते हो।
जो भी सच्चे मन और श्रद्धा से आपका ध्यान करता है, आपकी साधना, आपकी प्रार्थना जप तप व्रत करता है, तुम सदा सदा को उसके हो जाते हो, संसार के समस्त भौतिक सुखों को देखकर मोक्ष का रास्ता दिखाते हो।
सृष्टि के कण-कण में तुम्हारा निवास है।
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